उ प्र सहकारी संग्रह निधि और अमीन तथा अन्य कर्मचारी सेवा (चतुर्थ संशोधन) नियमावली, 2020 प्रख्यापित


लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में यहां लोक भवन में सम्पन्न मंत्रिपरिषद की बैठक में निम्नलिखित महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए जिसमें उ प्र सहकारी संग्रह निधि और अमीन तथा अन्य कर्मचारी सेवा (चतुर्थ संशोधन) नियमावली, 2020 प्रख्यापित हुई। 'मंत्रिपरिषद ने उत्तर प्रदेश सहकारी संग्रह निधि और अमीन तथा अन्य कर्मचारी सेवा (चतुर्थ संशोधन) नियमावली, 2020' प्रख्यापित करने का निर्णय लिया है। इसके तहत विभागीय हित में वर्तमान में निर्धारित कमीशन की दरों को 04 एवं 06 प्रतिशत के स्थान पर 03 प्रतिशत करने तथा अतिरिक्त कमीशन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। तद्क्रम में 'उत्तर प्रदेश सहकारी संग्रह निधि और अमीन तथा अन्य कर्मचारी सेवा नियमावली, 2002' के नियम 24 के उपनियम (1) व (2) एवं 25 के उपनियम (ग) में संशोधन किया गया है। वर्तमान में उ प्र राजस्व संहिता नियमावली, 2016 के नियम 179 में बकायेदारों से वसूल किये जाने वाली संग्रह शुल्क की दर 05 प्रतिशत निर्धारित कर दी गयी है। ऐसी स्थिति में सहकारी कमीशन अमीनों को भूराजस्व की भांति वसूली किये जाने पर उ प्र सहकारी संग्रह निधि और अमीन तथा अन्य कर्मचारी सेवा नियमावली, 2002 के नियम 24 के उपनियम (1) में निर्धारित कमीशन की दरों 04 एवं 06 प्रतिशत से कमीशन तथा नियम 24 के उपनियम (2) के अनुसार कमीशन दिया जाना सम्भव नहीं है। ज्ञातव्य है कि सहकारी समितियों के अतिदेयों के बकाये की वसूली मालगुजारी के बकाये की भांति करने के लिए सम्बन्धित जिलों के जिलाधिकारी द्वारा कुर्क अमीनों की नियुक्ति की जाती है। सहकारी कुर्क अमीनों द्वारा वसूल किया गया 10 प्रतिशत संग्रह शुल्क एक निधि में जमा होता है, जिसे संग्रह निधि कहते हैं। इसी निधि से अमीनों को वेतन/कमीशन तथा अन्य कर्मचारियों का वेतन दिया जाता है। मा उच्चतम न्यायालय में राज्य सरकार द्वारा योजित सिविल अपील संख्या 6067/1997 एवं उसके साथ सम्बद्ध अपील संख्या-8467-68/1995 में पारित आदेश दिनांक 20.03.2001 द्वारा उक्त दाखिल अपीलों को निरस्त किये जाने के उपरान्त राज्य सरकार द्वारा मा0 उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन किये जाने हेतु दिनांक 30.10.2002 को उ0प्र0 सहकारी संग्रह निधि और अमीन तथा अन्य कर्मचारी सेवा नियमावली 2002 प्रख्यापित की गयी, जिसमें बाद में तीन संशोधन भी किये गये।


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