प्राचीन मंदिरों का संरक्षण है समय की प्रमुख मांग

> आईआईटी कानपुर में आठवें प्राचीन भारतीय विज्ञान व तकनीकी विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया।

> शिल्प शास्त्र अध्धयन को सिविल इंजीनियरिंग शिक्षा में शामिल करना है अति आवश्यक: प्रो देवी प्रसाद मिश्रा


कानपुर (का ० उ ० सम्पादन)। बीते मंगलवार को आईआईटी कानपुर में आठवें प्राचीन भारतीय विज्ञान व तकनीकी विषय पर एक सेमिनार का आयोजन प्रो देबी प्रसाद मिश्रा के सानिध्य में किया गया। सेमिनार का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रो धनुष धारी मिश्रा (आईआईटी धनबाद) , डॉ संजय कुमार मंजुल (पुरातत्व विभाग, दिल्ली) व प्रो देबी प्रसाद मिश्रा (आईआईटी कानपुर) के द्वारा दीप प्रज्जवलन करके किया गया। इसमें सभी अतिथि वक्ताओं ने अपने महत्वपूर्ण विचार रखे जो कि बहुत ही तर्कसम्मत व विज्ञान सम्मत थे। डॉ संजय कुमार मंजुल जी ने पौराणिक ग्रंथों के महत्व पर चर्चा  की व भारतीय पुरातत्व के माध्यम से प्राचीन निर्माणों का महत्व बताया। डॉ मंजुल ने अपने प्राचीन भारतीय ज्ञान को विश्व पटल पर प्रेषित व पोषित करने की प्रेरणा दी। प्रो धनुष धारी मिश्रा ने  बताया की अपनी भारतीय प्राचीन परम्पराओं की जड़े बहुत ही सुदृढ़ हैं, उन्होंने चर्चा में विज्ञान को पौराणिक ज्ञान से जोड़कर अपने तर्क दिए। प्रो मिश्रा ने इतिहास को विज्ञान सम्मत व एक दूसरे से जुड़ा हुआ बताया। प्रो ललित मिश्रा (एमिटी यूनिवर्सिटी, दिल्ली) ने प्राचीन भारतीयों द्वारा विज्ञान व प्रौदौगिकी क्षेत्र में किए गए मुख्य अनुसंधानों का प्रमाण सहित वर्णन किया। उन्होंने विज्ञान की प्रथम परिभाषा  देते हुए प्रमुख अनुसंधाकर्त्ताओं व ऋषियों के योगदान की चर्चा की।अग्नि की भारतीय परम्परा में विवेचना के साथ धातु कर्म विज्ञान में भारतीयों के विलक्षण योगदान का वर्णन किया।


प्रो देवी प्रसाद मिश्रा (आईआईटी कानपुर) ने प्राचीन भारत के वास्तुकला के परपेक्ष्य में मंदिर निर्माण की प्रदौगिकी का विस्तार से वर्णन किया और उत्तर व दक्षिण भारतीय शैलियों की विवेचना की। मंदिर, भारतीय ज्ञान परम्परा और विरासत का प्राण केंद्र रहे हैं। इनकी निर्माण शैली बहुत सुंदर व टिकाऊ थे लेकिन इनका संरक्षण करने के लिए शिल्प शास्त्र को अध्धयन करके आज के परिवेश में कारगर बनाना जरूरी है इसके लिए हमारे सिविल इंजीनियरिंग शिक्षा में इसे शामिल करना अति आवश्यक है। प्रो मिश्रा ने छात्रों का प्राचीन मंदिर निर्माण कला सीखने के लिए आह्वाहन किया, ताकि हमारे प्राचीन मंदिर संरक्षित हो सके। संजीव कुमार ने अंत में सभी अतिथि वक्ताओं, प्रतिभागियों व आयोजक मंडल को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन शिवकुमार व मनीषा जी ने किया। विष्णु हरिहरन व शैलेन्द्र ने सेमिनार में विशेष योगदान दिया।

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