ब्लैक होल बाइनरी सिस्टम में एक्स-रे परिवर्तनशीलता की पहचान

> आईयूसीएए पुणे और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने इसरो के एस्ट्रोसैट का उपयोग करके ब्लैक होल से एक्स-रे उत्सर्जन का अध्ययन किया।

> टीआईएफआर मुंबई में विकसित लार्ज एरिया एक्स-रे प्रोपोरशनल काउंटर और सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप उपकरणों से  किया डेटा का विश्लेषण।

> एस्ट्रोसैट ने वरिएबिलिटी को जनरल रेलटिविस्टिकली मॉडिफाइड साउंड क्रॉसिंग टाइम के साथ पहचानने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है: प्रो रंजीव मिश्रा

> सेण्टर ऑफ़ नो रिटर्न पर न्यूटोनियन गुरुत्वाकर्षण विफल रहता है: प्रो पंकज जैन


कानपुर (का ० उ ० सम्पादन)। ब्लैकहोल एक्स-रे बायनेरिज़ एक ब्लैक होल और एक दूसरे को परिक्रमा करने वाले एक सामान्य तारे से मिलकर बनी प्रणाली है। सामान्य तारे से निकलने वाला पदार्थ ब्लैक होल की ओर गिरता है, जो धीरे-धीरे सर्पिलिंग गैस की एक डिस्क बनाता है, जिसे एक्रीशन डिस्क कहा जाता है। डिस्क के आंतरिक क्षेत्र एक्स-रे उत्पन्न करते हैं जो कभी-कभी क्वैसी-पीरिऑडिक ऑसिलेशन (क्यूपीओ) के रूप में भिन्न होते हैं, जिनकी फ्रीक्वेंसी को संभवतः आंतरिक रूप से खंडित डिस्क रेडियस से जुड़े सिस्टम के कुछ विशिष्ट टाइम पीरियड के अनुरूप होना चाहिए। ब्लैक होल की निकटता के कारण, इन टाइम-स्केल्स को आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी द्वारा संशोधित किया जाना चाहिए। ये ऑसिलेशन अलग-अलग भौतिक घटनाओं से जुड़े हो सकते हैं और थ्योरी ये भविष्यवाणी करती है कि इनर डिस्क रेडियस के साथ उनकी फ्रीक्वेंसी कैसे बदल जाएगी। इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स (आईयूसीएए), पुणे और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारतीय अंतरिक्ष वेधशाला इसरो द्वारा लॉन्च किये गए एस्ट्रोसैट का उपयोग करके एक प्रसिद्ध ब्लैक होल बाइनरी जीआरएस 1915 + 105 से एक्स-रे उत्सर्जन का अध्ययन किया। उन्होंने लार्ज एरिया एक्स-रे प्रोपोरशनल काउंटर (एलएएक्सपीसी) और सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप (एसएक्सटी) उपकरणों से डेटा का विश्लेषण किया, जो टीआईएफआर मुंबई में विकसित किए गए थे। इन उपकरणों की अद्वितीय क्षमता का उपयोग करते हुए, वे एक साथ ऑसिलेशन की फ्रीक्वेंसी, इनर एक्रीशन डिस्क रेडियस और एक्रीशन रेट का अनुमान लगाने में सक्षम थे कि पदार्थ की कितनी मात्रा प्रति सेकंड ब्लैक होल में जा रही है। उन्होंने पाया कि डायनामिक रेडियस और एक्रीशन रेट के साथ-साथ डायनामिक फ्रीक्वेंसी के समान ही फ्रीक्वेंसी बदलती है, अर्थात् ध्वनि तरंगों द्वारा इनर रेडियस से ब्लैक होल तक जाने में लगने वाले समय का विलोम, जैसा कि चार दशक पहले जनरल रेलटीवीस्टिक थ्योरी द्वारा एक्रीशन डिस्क के बारे में बताया गया था। यह पहचान जनरल रिलेटिविटी का परीक्षण करने के लिए इस तरह की प्रणाली प्रयोगशालाओं को बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है। प्रोफेसर रंजीव मिश्रा (आईयूसीएए) ने कहा कि कई वर्षों से वैज्ञानिकों ने देखा है कि ब्लैक होल सिस्टम से एक्स-रे उत्सर्जन में रैपिडली और कभी-कभी लगभग पीरियोडीकली भिन्नता होती है, जिसका अर्थ है कि ब्लैकहोल के मजबूत गुरुत्वाकर्षण के कारण उन्हें जनरल रिलेटिविस्टिक इफेक्ट्स द्वारा संशोधित किया जाना चाहिए। यह निराशाजनक रहा है कि हमारे शोध थ्योरी की भविष्यवाणियों को ठोस रूप से मेल नहीं खाते और ताकि नेचर ऑफ़ वेरिएबिलिटी की पहचान की जा सके। मुझे खुशी है कि एस्ट्रोसैट ने इस वरिएबिलिटी को जनरल  रेलटिविस्टिकली मॉडिफाइड साउंड क्रॉसिंग टाइम के साथ पहचानने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। हम एस्ट्रोसैट और अन्य वेधशालाओं के ऐसे और परिणामों के लिए तत्पर हैं, जो अब सैद्धांतिक ढांचों को और अधिक मजबूती से विकसित करने की अनुमति देंगे। दिव्या रावत (पीएचडी छात्रा, आईआईटी-कानपुर) ने कहा, इस शोध के साथ, हमने ब्लैक होल सिस्टम में व्यापक रूप से ज्ञात एक्स-रे परिवर्तनशीलता की उत्पत्ति की पहचान की है, क्योंकि दबाव तरंगों द्वारा एक्रीशन डिस्क के माध्यम से यात्रा करने में समय लगता है। हमारे भविष्य के अनुसंधान परियोजनाओं में, हम उन सैद्धांतिक मॉडल पर काम करेंगे जो यहां शामिल भौतिक प्रक्रिया को समझा सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि हमने जटिल ब्लैक होल सिस्टम की समझ के लिए अपना छोटा सा योगदान दिया। प्रो पंकज जैन (आईआईटी-कानपुर) ने कहा, एस्ट्रोसैट डेटा का उपयोग करके हम जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी द्वारा अनुमानित दूरी पर मजबूत गुरुत्वाकर्षण प्रभावों की जांच करने में सक्षम हो गए हैं, जो कि डिस्टेंट होराइजन की दूरी के 3 गुना दूरी के करीब है, यानी ब्लैक होल के केंद्र से सेण्टर ऑफ़ नो रिटर्न। ऐसी दूरी पर न्यूटोनियन गुरुत्वाकर्षण विफल रहता है। यह पता लगाना बहुत रोमांचक है कि यह डेटा प्रेडिक्शन जनरल रिलेटिविटी डेटा से अच्छी तरह सहमत है। मैं इस तथ्य से भी रोमांचित हूं कि इस स्रोत में ब्लैक होल अपने अधिकतम अनुमत वैल्यू पर घूम रहा है। प्रो जे एस यादव (आईआईटी-कानपुर) जो 2018 में टीआईएफआर मुंबई से सेवानिवृत्त हुए थे, वे स्पेस क्वालिफिकेशन टेस्ट्स, कैलिब्रेशन और लॉन्च के दौरान एलएएक्सपीसी साधन के प्रधान अन्वेषक थे। उन्होंने कहा कि, यह वास्तव में भारत में एक विश्व स्तरीय अंतरिक्ष उपकरण विकसित करने के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण और समय लेने वाला है। हालांकि, अगर उपकरण नियोजित रूप से उच्च परिशुद्धता के साथ प्रदर्शन करता है, तो यह बहुत संतोषजनक है और सभी जोखिमों के लायक है। इससे पहले, मैंने अन्य देशों द्वारा शुरू की गई अंतरिक्ष वेधशालाओं के डेटा का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर इस ब्लैक होल सिस्टम जीआरएस 1915 + 105 पर काम किया है। मुझे बहुत खुशी है कि अब हम अपने स्वयं के उपग्रह का उपयोग करके इस महत्वपूर्ण परिणाम को प्रदर्शित करने में सक्षम हुए हैं जो पहले अन्य अंतरिक्ष वेधशालाओं द्वारा नहीं किया गया था। यह परिणाम भविष्य के भारतीय विज्ञान अंतरिक्ष अभियानों के महत्व को रेखांकित करता है।

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