कूड़े के डिब्बे में एकत्र कचरे से बीमारियों के प्रसार को कम करने में सक्षम है नेचर बॉक्स - स्मार्ट बिन सिस्टम

> आईआईटी कानपुर के स्टार्ट-अप नेचरसेंस टेक्नोलॉजीज और आईआईटी जोधपुर ने मिलकर बनाया है नेचर बॉक्स- स्मार्ट बिन सिस्टम।

 

> कूड़े के डिब्बे की सफाई में मैन पावर और संसाधन की खपत को 80% तक कम करता है नेचर बॉक्स - स्मार्ट बिन सिस्टम।

 


 

कानपुर (का उ सम्पादन)। इस दशक में रोग और महामारी नए मानदंड बन गए हैं। कोविड -19 के वर्तमान संकट के खिलाफ केवल सुरक्षित दृष्टिकोण ही उचित स्वच्छता और दूरी बनाए रखना है। सुरक्षित और स्वच्छ तरीके से कचरे को डिस्कार्ड करने में कूड़ादान का उपयोग इसका आवश्यक पहलू है। हालांकि, विभिन्न एजेंसियों के सभी प्रयासों के बावजूद सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ादान की उपलब्धता, प्रबंधन और निगरानी अभी भी एक बड़ी चुनौती है। कूड़े के डिब्बे के खराब डिज़ाइन द्वारा स्थिति और भी भयावह हो जाती है जो अक्सर जानवरों, पक्षियों और मूषक इत्यादि के लिए सुलभ होता है। आम डिब्बे से हवा के कारण कूड़े के ढेर अक्सर इधर-उधर बिखर जाते हैं। अक्सर कचरे में जैविक रूप से दूषित या संक्रामक कचरा होता है, जिसमें वायरस सहित रोगजनक सूक्ष्मजीव शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कूड़े में मौजूद रोगजनकों और नॉन आइडेंटिफाइड अथवा नॉन क्वारनटाइण्ड कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति द्वारा डिस्कार्ड किये गए कूड़े के डिब्बे में मौजूद पदार्थ 3 - 4 दिनों तक जीवित रहते हैं। ये खराब डिज़ाइन से बनाये गए डिब्बे सेकेंडरी स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, जहाँ से रोगजनकों को उपयोग य हैंडलिंग के दौरान संपर्क के कारण अन्य उपयोगकर्ताओं, राहगीरों और सफाई कर्मचारियों को संक्रमित कर सकते हैं। अधिकांश मामलों में समय और संसाधन की कमी के कारण व्यक्ति के लिए प्रत्येक बिन की निगरानी करना संभव नहीं है। उचित निगरानी के अभाव में, अक्सर सफाई के बिना डिब्बे ऐसे ही छोड़ दिए जाते हैं। इन्वेंट्री की केंद्रीय निगरानी और डिब्बे की सफाई के लिए कोई भी मैकेनिज्म अनुपस्थित है। यह स्थिति हमें रोग ग्रस्त परिदृश्य की ओर बढ़ने के लिए आगाह कर रही है। डॉ अमित सिंह चौहान नेचरसेंस टेक्नोलॉजीज, आईआईटी कानपुर के एक स्टार्ट-अप के द्वारा प्रो तरुण गुप्ता, पर्यावरण विज्ञान और अभियांत्रिकी केंद्र, आईआईटी  कानपुर और प्रो सुमित कालरा, कंप्यूटर विज्ञान विभाग, आईआईटी  जोधपुर के साथ मिलकर एक नया नेचर बॉक्स- स्मार्ट बिन सिस्टम बनाया है। नेचर बॉक्स डिब्बे की अधिकतम स्वच्छता और समय पर सफाई सुनिश्चित करता है। हर जगह के लिए नेक्सस बॉक्स रेंज उपयोगी है, जहाँ कहीं भी कूड़े के डिब्बे की जरूरत होती है। हालांकि मौजूदा संकट के बारे में वर्तमान में अस्पतालों, नगर निगम नामित क्षेत्रों और अन्य कोविड-19 जोखिम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। नेचर बॉक्स की संभावित लागत मॉडल के अनुसार 20,000 रुपए से 50,000 रुपए तक है।

 

इस नवाचार की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं

1. नेचर बॉक्स के इनलेट मुँह में विशेष कोटिंग होती है जो प्लास्टिक य अन्य डिब्बे पर इसके जीवन की तुलना में कोरोना वायरस के जीवन को 95% तक कम कर देती है। यह अपशिष्ट हैंडलिंग के दौरान सुरक्षा स्तर को बढ़ाता है और अन्य उपयोगकर्ताओं और श्रमिकों में सेकेंडरी संक्रमण की संभावना को कम करता है।  

 

2. नेचरबॉक्स सिस्टम स्वदेशी डिजाइन वाले स्टील से बना है जो जानवरों को कूड़े तक पहुंचने को रोकता है। वे अपशिस्ट को हवा में फैलने से रोकने के साथ साथ और अन्य अवांछित घुसपैठ की भी जाँच करते हैं। इसका मतलब यह भी है कि बार बिन के अंदर रोगजनकों और कचरे के डिब्बे के बाहर कूड़े होने की शून्य संभावना है इस के साथ साथ यह डिब्बे में एकत्र कचरे से बीमारियों के प्रसार को कम करता है। 

 

3. नेचर बॉक्स ने स्वदेशी रूप से विकसित इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स मॉड्यूल दिया है जो मानचित्र पर प्रत्येक बिन के स्तर की जानकारी प्रदान करता है। उपयोगकर्ता डैशबोर्ड प्रत्येक बिन पर प्रत्येक बिन लोड की पिछली सफाई और डिब्बे की सफाई के लिए आवश्यक आवृत्ति के बारे में भी बताता है। यह डिब्बे की समय पर सफाई की निगरानी और प्रबंधन करने के लिए अथॉरिटी विथ टूल्स को अधिकार देता है। यह डिब्बे की सफाई में मैन पावर और संसाधन की खपत को 80% तक कम करता है। 

 

4. अन्य पारंपरिक डिब्बे की तुलना में नेचर बॉक्स में लंबे समय तक काम करता है। वे न केवल मजबूत और टिकाऊ होते हैं, बल्कि आसपास के सौंदर्य को भी बढ़ाते हैं। वे अभी दिखने वाले गंदे डिब्बे की मानसिकता को बदलते हुए, सुंदर स्वच्छ और नियमित रूप से सेवित डिब्बे को देखकर खुश होने की अनुभूति करने के लिए हैं। 

 

5. शुरुआती लागत को कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए सिस्टम को मौजूदा डिब्बे के बुनियादी ढाँचे के साथ भी फिट किया जा सकता है।

 


 

डॉ अमित सिंह चौहान ने एमटेक (पर्यावरण इंजीनियरिंग और प्रबंधन) आईआईटी कानपुर, पीएचडी (सिविल इंजीनियरिंग) आईआईटी कानपुर से किया है। डॉ अमित को बायो एयरोसोल, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और पर्यावरण के मानव स्वास्थ्य पहलुओं पर विशेषज्ञता हासिल है। उनके पास पर्यावरण संबंधी मामलों के लिए इंजीनियरिंग समाधान पर काम करने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। उन्हें 2016 में आईआईटी कानपुर कन्वोकेशन के दौरान "किसी भी क्षेत्र में वैश्विक महत्व की प्रौद्योगिकी के विकास में सर्वश्रेष्ठ नवीन परियोजना के लिए इनोवेशन अवार्ड" से सम्मानित किया जा चुका है।

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