भारतीय साक्ष्य अधिनियम व सीआरपीसी में मृत्युकालिक कथन का होता है बहुत अधिक महत्व
> अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश - उत्तराखंड द्वारा शुरू की गई "वी के एस चौधरी स्मृति व्याख्यान माला" में पूर्व रजिस्ट्रार जनरल वी के माहेश्वरी ने मृत्युकालिक कथन विषय पर अधिवक्ताओं संग किया वेबिनार।
कानपुर (का उ)। अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश - उत्तराखंड द्वारा शुरू की गई "वी के एस चौधरी स्मृति व्याख्यान माला " में गुरूवार 25 जून 2020 को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के पूर्व रजिस्ट्रार जनरल वी के माहेश्वरी ने मृत्युकालिक कथन विषय पर बताया कि किसी व्यक्ति द्वारा मृत्यु पूर्व किये गए कथन को ही मृत्युकालिक कथन कहते हैं। यह कथन न्यायिक मजिस्ट्रेट के अलावा किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है किंतु मृत्युकालिक कथन करने वाले व्यक्ति की शारिरिक व मानसिक स्थिति कथन करते समय सही होनी चाहिए जिसके लिए चिकित्सीय प्रमाणपत्र लिया जाता है। यदि किसी व्यक्ति के साथ कोई घटना कारित होती है और वह स्वंय प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखता है और अन्वेषण में 161 व 164 सीआरपीसी के बयान दर्ज करता है और फिर मर जाता है तो वह भी मृत्युकालिक कथन मना जाएगा किन्तु उस कथन की निकटता उसकी मृत्यु से सम्बंधित होना चाहिए। आशंका पर आधारित घटना से दिया गया कोई प्रार्थनापत्र इस श्रेणी में नही आएगा किन्तु यदि प्रार्थना पत्र सम्बंधित घटना व व्यक्ति से गहनता के साथ सम्बंधित है तो उस कथन का उपयोग इसके लिए किया जा सकता है। इसमें घटना से सम्बन्ध होना आवश्यक है और यदि कोई मृत्युकालिक कथन एक या एक से अधिक बार रिकॉर्ड किया जाता है तो न्यायालय का कर्तव्य है कि वह उस कथन की विश्वसनीयता को देखते हुए निर्णय दे। यदि मृत्युकालिक कथन से पूर्व इलाज चल रहा हो तो यदि मृत्युपूर्व चिकित्सक ने मजिस्ट्रेट के न आने पर बयान सुना व लिखा है तो वो बयान भी संदेह से परे होने पर मृत्युकालिक कथन के रूप में न्यायालय पढ़ सकता है। मृत्युकालिक कथन सिविल व क्रिमिनल परीक्षण दोनों में प्रयोग हो सकता है जहाँ तक उसकी मृत्यु का कारण यह कथन स्पोर्ट करता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम व सीआरपीसी में इसका बहुत अधिक महत्व है। यदि कुछ कथन गलत व कुछ सही हैं तो कितना कथन सत्य है कितना विश्वसनीय है और संदेह से परे है यह न्यायालय देखेगा और उसी के आधार पर ही अभियुक्त को दण्डित करेगा। इस सम्बंध में अनेक सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के विधि सिद्धान्तों का भी उल्लेख किया। सजीव प्रसारण में कार्यकारी प्रदेश महामंत्री अश्वनी त्रिपाठी, कमलेश पाठक, उमाशंकर गुप्ता, घनशयाम बाजपाई, राजेंद्र त्रिपाठी, ज्योत्ति मिश्रा, सुशील कुमार शुक्ला, अनिल दीक्षित, ज्योति राव दुबे, मीनू सचदेवा, संजय शुक्ला, संगीता गुप्ता, राजीव, प्रशांत, आदि अधिवक्ताओं ने भाग लिया।