अब, देश बदल रहा है, गांवों से, छोटे शहरों से, सामान्य परिवार से हमारे युवा आगे आ रहे हैं: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी


> प्रधानमंत्री ने मन की बात 2.0’ की 14वीं कड़ी (26.07.2020) को सम्बोधित किया।


>प्रधानमंत्री ने किया आग्रह www.gallantryawards.gov.in ज़रूर विजिट करें।


> आजकल, युद्ध, केवल सीमाओं पर ही नहीं लड़े जाते हैं, देश में भी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ा जाता है : प्रधानमंत्री


> लोगों को चिकित्सकों, नर्सों और कोरोना वारियर्स से प्रेरणा लेनी चाहिए, वो आठ-आठ, दस-दस घंटे तक मास्क पहने रखते हैं : प्रधानमंत्री 


> भारतीय हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट का ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग करें : प्रधानमंत्री


> कारगिल युद्ध में जीत पहाड़ की ऊँचाई की नहीं - भारत की सेनाओं के ऊंचे हौंसले और सच्ची वीरता की हुई : प्रधानमंत्री बोले कारगिल विजय दिवस पर उन वीर माताओं को भी नमन करता हूँ, जिन्होंने, माँ-भारती के सच्चे सपूतों को जन्म दिया। राष्ट्र सर्वोपरी का मंत्र लिए, एकता के सूत्र में बंधे देशवासी, हमारे सैनिकों की ताक़त को कई हज़ार गुणा बढ़ा देते हैं।



 


 


>> हमारे हथियार जो हमें कोरोना से बचा सकते हैं :


>> चेहरे पर मास्क लगाना


>> गमछे का उपयोग करना


>> दो गज की दूरी


>> लगातार हाथ धोना


>> कहीं पर भी थूकना नहीं


>> साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखना



 

> अटल जी ने लालकिले से जो गांधी जी के मन्त्रों की याद दिलाई थी, अटल जी की इस भावना को स्वीकार करें : प्रधानमंत्री


अटल जी का साउंड बाईट -   


“हम सभी को याद है कि गाँधी जी ने हमें एक मंत्र दिया था | उन्होंने कहा था कि यदि कोई दुविधा हो कि तुम्हें क्या करना है, तो तुम  भारत के उस सबसे असहाय व्यक्ति के बारे में सोचो और स्वयं से पूछो कि क्या तुम जो करने जा रहे हो उससे उस व्यक्ति की भलाई होगी | कारगिल ने हमें दूसरा मंत्र दिया है – कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले हम ये सोचें कि क्या हमारा ये कदम उस सैनिक के सम्मान के अनुरूप है, जिसने उन दुर्गम पहाड़ियों में अपने प्राणों की आहुति दी थी ”


 


फसल की गुणवत्ता और कम ज़मीन में ज्यादा उत्पाद को लेकर काफी इनोवेशन किये जा रहे हैं, इसपर प्रधानमंत्री ने दिए उदहारण :


त्रिपुरा, मणिपुर, असम के कारीगरों ने उच्च गुणवत्ता की पानी की बोतल और टिफिन बॉक्स बनाना शुरू किया है, ये बोतलें ईको फ्रेंडली हैं


झारखंड के बिशुनपुर की लेमन ग्रास चार महीनों में तैयार हो जाती है और उसका तेल बाज़ार में अच्छे दामों में बिकता है


एप्रीकॉट की फसल की कम-से-कम बर्बादी हो, इसके लिए एक नए इनोवेशन का इस्तेमाल शुरू हुआ है - एक डुअल सिस्टम है जिसका नाम है सोलर एप्रीकॉट ड्रायर और स्पेस हीटर। ये खुबानी और दूसरे अन्य फलों एवं सब्जियों को जरुरत के अनुसार सुखा सकता है और वो भी स्वच्छ तरीक़े से।




नई दिल्ली (पी आई बी) प्रधानमंत्री जी के सम्बोधन का मूल पाठ - मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार आज 26 जुलाई है और आज का दिन बहुत खास है। आज, कारगिल विजय दिवस है। 21 साल पहले आज के ही दिन कारगिल के युद्ध में हमारी सेना ने भारत की  जीत का झंडा फहराया था। साथियों, कारगिल का युद्ध जिन परिस्थितियों में हुआ था वो भारत कभी नहीं भूल सकता।  पाकिस्तान ने बड़े-बड़े मनसूबे पालकर भारत की भूमि हथियाने और अपने यहाँ चल रहे आन्तरिक कलह से ध्यान भटकाने को लेकर दुस्साहस किया था। भारत तब पाकिस्तान से अच्छे संबंधों के लिए प्रयासरत था, लेकिन, कहा जाता है ना " बयरू अकारण सब काहू सों  जो कर हित अनहित ताहू सों " यानी, दुष्ट का स्वभाव ही होता है हर किसी से बिना वजह दुश्मनी करना। ऐसे स्वभाव के लोग जो हित करता है, उसका भी नुकसान ही सोचते हैं। इसीलिए भारत की मित्रता के जवाब में पाकिस्तान द्वारा पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश हुई थी लेकिन, उसके बाद भारत की वीर सेना ने जो पराक्रम दिखाया, भारत ने अपनी जो ताकत दिखाई, उसे पूरी दुनिया ने देखा। आप कल्पना कर सकते हैं – ऊचें पहाडों पर बैठा हुआ दुश्मन और नीचे से लड़ रही हमारी सेनाएं, हमारे वीर जवान, लेकिन, जीत पहाड़ की ऊँचाई की नहीं - भारत की सेनाओं के ऊँचे हौंसले और सच्ची वीरता की हुई।  साथियों, उस समय मुझे भी कारगिल जाने और हमारे जवानों की वीरता के दर्शन का सौभाग्य मिला, वो दिन, मेरे जीवन के सबसे अनमोल क्षणों में से एक है। मैं, देख रहा हूँ कि आज देशभर में लोग कारगिल विजय को याद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक hashtag #courageinkargil के साथ लोग अपने वीरों को नमन कर रहें हैं, जो शहीद हुए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दे रहें हैं। मैं, आज, सभी देशवासियों की तरफ से, हमारे इन वीर जवानों के साथ-साथ, उन वीर माताओं को भी नमन करता हूँ, जिन्होंने, माँ-भारती के सच्चे सपूतों को जन्म दिया। मेरा, देश के नौजवानों से आग्रह है कि आज दिन-भर कारगिल विजय से जुड़े हमारे जाबाजों की कहानियाँ, वीर-माताओं के त्याग के बारे में, एक-दूसरे को बताएँ, शेयर करें। साथियों मैं आपसे एक आग्रह करता हूँ कि आज  एक वेबसाइट है www.gallantryawards.gov.in आप उसको ज़रूर विजिट करें। वहां आपको, हमारे वीर पराक्रमी योद्धाओं के बारे में, उनके पराक्रम के बारे में, बहुत सारी जानकारियां प्राप्त होंगी और वो जानकारियां जब आप अपने साथियों के साथ चर्चा करेंगे - उनके लिए भी प्रेरणा का कारण बनेगी। आप ज़रूर इस वेबसाइट को विजिट कीजिये और मैं तो कहूँगा, बार-बार कीजिये। साथियों, कारगिल युद्ध के समय अटल जी ने लालकिले से जो कहा था वो आज भी हम सभी के लिए बहुत प्रासंगिक है। अटल जी ने तब देश को गाँधी जी के एक मंत्र की याद दिलायी थी। महात्मा गाँधी का मंत्र था कि यदि किसी को कभी कोई दुविधा हो कि उसे क्या करना, क्या न करना तो उसे भारत के सबसे गरीब और असहाय व्यक्ति के बारे में सोचना चाहिए। उसे ये सोचना चाहिए कि जो वो करने जा रहा है, उससे, उस व्यक्ति की भलाई होगी या नहीं होगी। गाँधी जी के इस विचार से आगे बढ़कर अटल जी ने कहा था कि कारगिल युद्ध ने हमें एक दूसरा मंत्र दिया है - ये मंत्र था कि कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले, हम ये सोचें कि क्या हमारा ये कदम, उस सैनिक के सम्मान के अनुरूप है जिसने उन दुर्गम पहाड़ियों में अपने प्राणों की आहुति दी थी। आइए अटल जी की आवाज़ में ही, उनकी इस भावना को, हम सुनें समझें और समय की मांग है कि उसे स्वीकार करें।  साथियों, युद्ध की परिस्थिति में, हम जो बात कहते हैं, करते हैं, उसका सीमा पर डटे सैनिक के मनोबल पर उसके परिवार के मनोबल पर बहुत गहरा असर पड़ता है। ये बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए और इसीलिए हमारा आचार, हमारा व्यवहार, हमारी वाणी, हमारे बयान, हमारी मर्यादा, हमारे लक्ष्य, सभी कसौटी में ये जरूर रहना चाहिए कि हम जो कर रहे हैं, कह रहे हैं, उससे सैनिकों का मनोबल बढ़े, उनका सम्मान बढ़े। राष्ट्र सर्वोपरी का मंत्र लिए, एकता के सूत्र में बंधे देशवासी, हमारे सैनिकों की ताक़त को कई हज़ार गुणा बढ़ा देते हैं। हमारे यहाँ तो कहा गया है न संघे शक्ति कलौ युगे। कभी-कभी हम इस बात को समझे बिना सोशल मीडिया पर ऐसी चीजों को बढ़ावा दे देते हैं जो हमारे देश का बहुत नुक्सान करती हैं। कभी-कभी जिज्ञासावश फॉरवर्ड करते रहते हैं। पता है गलत है ये - करते रहते हैं। आजकल, युद्ध, केवल सीमाओं पर ही नहीं लड़े जाते हैं, देश में भी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ा जाता है और हर एक देशवासी को उसमें अपनी भूमिका तय करनी होती है। हमें भी अपनी भूमिका, देश की सीमा पर, दुर्गम परिस्तिथियों में लड़ रहे सैनिकों को याद करते हुए तय करनी होगी। मेरे प्यारे देशवासियों, पिछले कुछ महीनों से पूरे देश ने एकजुट होकर जिस तरह कोरोना से मुकाबला किया है, उसने अनेक आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है। आज, हमारे देश में रिकवरी रेटअन्य देशों के मुकाबले बेहतर है, साथ ही, हमारे देश में कोरोना से मृत्यु-दर भी दुनिया के ज्यादातर देशों से काफ़ी कम है। निश्चित रूप से एक भी व्यक्ति को खोना दुखद है, लेकिन भारत, अपने लाखों देशवासियों का जीवन बचाने में सफल भी रहा है। लेकिन साथियों, कोरोना का खतरा टला नहीं है। कई स्थानों पर यह तेजी से फैल रहा है। हमें बहुत ही ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। हमें यह ध्यान रखना है कि कोरोना अब भी उतना ही घातक है, जितना शुरू में था, इसीलिए, हमें पूरी सावधानी बरतनी है। चेहरे पर मास्क लगाना या गमछे का उपयोग करना, दो गज की दूरी, लगातार हाथ धोना, कहीं पर भी थूकना नहीं, साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखना - यही हमारे हथियार हैं जो हमें कोरोना से बचा सकते हैं। कभी-कभी हमें मास्क से तकलीफ होती है और मन करता है कि चेहरे पर से मास्क हटा दें।  बातचीत करना शुरू करते हैं। जब मास्क की जरूरत होती है ज्यादा, उसी समय, मास्क हटा देते हैं। ऐसे समय, मैं, आपसे आग्रह करूँगा जब भी आपको मास्क के कारण परेशानी महसूस होती हो, मन करता हो उतार देना है, तो पल-भर के लिए उन चिकित्सकों का स्मरण कीजिये, उन नर्सों का स्मरण कीजिये, हमारे उन कोरोना वारियर्स का स्मरण कीजिये, आप देखिये, वो, मास्क पहनकर के घंटो तक लगातार, हम सबके जीवन को बचाने के लिए जुटे रहते हैं। आठ-आठ, दस-दस घंटे तक मास्क पहने रखते हैं। क्या उनको तकलीफ नहीं होती होगी! थोड़ा सा उनका स्मरण कीजिये, आपको भी लगेगा कि हमें एक नागरिक के नाते इसमें जरा भी कोताही ना बरतनी है और न किसी को बरतने देनी है। एक तरफ हमें कोरोना के खिलाफ लड़ाई को पूरी सजगता और सतर्कता के साथ लड़ना है, तो दूसरी ओर, कठोर मेहनत से, व्यवसाय, नौकरी, पढाई, जो भी, कर्तव्य हम निभाते हैं, उसमें गति लानी है उसको भी नई ऊँचाई पर ले जाना है। साथियों, कोरोना काल में तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों ने पूरे देश को दिशा दिखाई है। गांवो से स्थानीय नागरिकों के, ग्राम पंचायतों के, अनेक अच्छे प्रयास लगातार सामने आ रहे हैं। जम्मू में एक ग्राम त्रेवा ग्राम पंचायत है। वहाँ की सरपंच हैं बलबीर कौर जी। मुझे बताया गया कि बलबीर कौर जी ने अपनी पंचायत में 30 बेड का एक क्वारंटाइन सेण्टर बनवाया। पंचायत आने वाले रास्तों पर, पानी की व्यवस्था की। लोगों को हाथ धोने में कोई दिक्कत न हो - इसका इंतजाम करवाया। इतना ही नहीं, ये बलबीर कौर जी, खुद अपने कन्धे पर स्प्रे पंप टांगकर, वालंटियर्स के साथ मिलकर, पूरी पंचायत में, आस-पास क्षेत्र में, सेनिटाइज़ेशन का काम भी करती हैं। ऐसी ही एक और कश्मीरी महिला सरपंच हैं।  गान्दरबल के चौंटलीवार की जैतूना बेगम। जैतूना बेगम जी ने तय किया कि उनकी पंचायत कोरोना के खिलाफ जंग लड़ेगी और कमाई के लिए अवसर भी पैदा करेगी। उन्होंने, पूरे इलाके में मुफ्त मास्क बांटे, मुफ़्त राशन बांटा, साथ ही उन्होंने लोगों को फसलों के बीज और सेब के पौधे भी दिए, ताकि, लोगों को खेती में, बागवानी में, दिक्कत न आये। साथियों, कश्मीर से एक और प्रेरक घटना है, यहाँ, अनंतनाग में म्युनिसिपल प्रेजिडेंट हैं - मोहम्मद इकबाल उन्हें, अपने इलाके में सेनिटाइज़ेशन के लिए स्प्रेयर की जरूरत थी। उन्होंने, जानकारी जुटाई, तो पता चला कि मशीन, दूसरे शहर से लानी पड़ेगी और कीमत भी होगी छ: लाख रुपए तो, श्रीमान इकबाल ने खुद ही प्रयास करके अपने आप स्प्रेयर मशीन बना ली और वो भी केवल पचास हज़ार रूपये में - ऐसे, कितने ही और उदाहरण हैं। पूरे देश में, कोने-कोने में, ऐसी कई प्रेरक घटनाएँ रोज सामने आती हैं ये सभी अभिनंदन के अधिकारी हैं। चुनौती आई, लेकिन लोगों ने उतनी ही ताकत से, उसका सामना भी किया। मेरे प्यारे देशवासियों, सही एप्रोच से सकारात्मक एप्रोच से हमेशा आपदा को अवसर में, विपत्ति को विकास में बदलने में, बहुत मदद मिलती है। अभी, हम कोरोना के समय भी देख रहे हैं कि कैसे हमारे देश के युवाओं-महिलाओं ने, अपने टैलेंट और स्किल  के दम पर कुछ नये प्रयोग शुरू किये हैं। बिहार में कई महिला स्वयं सहायता समूहों ने मधुबनी पेंटिंग वाले मास्क बनाना शुरू किया है, और देखते-ही-देखते, ये खूब लोकप्रिय हो गये हैं। ये मधुबनी मास्क एक तरह से अपनी परम्परा का प्रचार तो करते ही हैं, लोगों को स्वास्थ्य के साथ, रोजगारी भी दे रहे हैं। आप जानते ही हैं पूर्वोत्तर में बैम्बू यानी बाँस कितनी बड़ी मात्रा में होता है, अब इसी बाँस से त्रिपुरा, मणिपुर, असम के कारीगरों ने उच्च गुणवत्ता की पानी की बोतल और टिफिन बॉक्स बनाना शुरू किया है। बैम्बू से आप अगर इनकी क्वालिटी देखेंगे तो भरोसा नहीं होगा कि बाँस की बोतलें भी इतनी शानदार हो सकती हैं और फिर ये बोतलें ईको फ्रेंडली भी हैं। इन्हें, जब बनाते हैं, तो, बाँस को पहले नीम और दूसरे औषधीय पौधों के साथ उबाला जाता है, इससे, इनमें औषधीय गुण भी आते हैं। छोटे-छोटे स्थानीय उत्पादों से कैसे बड़ी सफलता मिलती है इसका एक उदहारण झारखंड से भी मिलता है। झारखंड के बिशुनपुर में इन दिनों 30 से ज्यादा समूह मिलकर के लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं।  लेमन ग्रास चार महीनों में तैयार हो जाती है और उसका तेल बाज़ार में अच्छे दामों में बिकता है। इसकी आजकल काफी माँग भी है। मैं, देश के दो इलाकों के बारे में भी बात करना चाहता हूँ, दोनों ही, एक-दूसरे से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं और अपने-अपने तरीक़े से भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ हटकर के काम कर रहे हैं - एक है लद्दाख, और दूसरा है कच्छ। लेह और लद्दाख का नाम सामने आते ही खुबसूरत वादियाँ और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के दृश्य हमारे सामने आ जाते हैं, ताज़ी हवा के झोंके महसूस होने लगते हैं। वहीँ कच्छ का ज़िक्र होते ही रेगिस्तान, दूर-दूर तक रेगिस्तान, कहीं पेड़-पौधा भी नज़र ना आये, ये सब, हमारे सामने आ जाता है। लद्दाख में एक विशिष्ट फल होता है जिसका नाम चूली या एप्रीकॉट यानी खुबानी है। ये फसल, इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बदलने की क्षमता रखती है, परन्तु अफ़सोस की बात ये है, सप्लाई चेन, मौसम की मार जैसे अनेक चुनौतियों से ये जूझता रहता है। इसकी कम-से-कम बर्बादी हो, इसके लिए, आजकल, एक नए इनोवेशन का इस्तेमाल शुरू हुआ है - एक डुअल सिस्टम है, जिसका नाम है, सोलर एप्रीकॉट ड्रायर और स्पेस हीटर। ये, खुबानी और दूसरे अन्य फलों एवं सब्जियों को जरुरत के अनुसार सुखा सकता है, और वो भी स्वच्छ तरीक़े से। पहले, जब खुबानी को खेतों के पास सुखाते थे, तो, इससे बर्बादी तो होती ही थी, साथ ही, धूल और बारिश के पानी की वजह से फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती थी। दूसरी ओर आजकल, कच्छ में किसान ड्रैगन फ्रूट्स की खेती के लिए सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। बहुत से लोग जब सुनते हैं तो उन्हें आश्चर्य होता है - कच्छ और ड्रैगन फ्रूट्स। लेकिन, वहाँ आज कई किसान इस कार्य में जुटे हैं। फल की गुणवत्ता और कम ज़मीन में ज्यादा उत्पाद को लेकर काफी इनोवेशन किये जा रहे हैं।  मुझे बताया गया है कि ड्रैगन फ्रूट्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है, विशेषकर, नाश्ते में इस्तेमाल काफी बढ़ा है। कच्छ के किसानों का संकल्प है, कि, देश को ड्रैगन फ्रूट्स का आयात ना करना पड़े - यही तो आत्मनिर्भरता की बात है। साथियों, जब हम कुछ नया करने का सोचते हैं, इनोवेटिव सोचते हैं तो ऐसे काम भी संभव हो जाते हैं, जिनकी आम-तौर पर कोई कल्पना नहीं करता, जैसे कि बिहार के कुछ युवाओं को ही लीजिये। पहले ये सामान्य नौकरी करते थे। एक दिन, उन्होंने, तय किया कि वो मोती की खेती करेंगे। उनके क्षेत्र में, लोगों को इस बारे में बहुत पता नहीं था, लेकिन, इन लोगों ने पहले सारी जानकारी जुटाई, जयपुर और भुवनेश्वर जाकर ट्रेनिंग ली और अपने गाँव में ही मोती की खेती शुरू कर दी। आज, ये स्वयं तो इससे काफ़ी कमाई कर ही रहे हैं, उन्होंने, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय और पटना में अन्य राज्यों से लौटे प्रवासी मजदूरों को इसकी ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी है। कितने ही लोगों के लिए, इससे आत्मनिर्भरता के रास्ते खुल गए हैं। साथियों, अभी कुछ दिन बाद रक्षाबंधन का पावन पर्व आ रहा है। मैं, इन दिनों देख रहा हूँ कि कई लोग और संस्थायें इस बार रक्षाबंधन को अलग तरीके से मनाने का अभियान चला रहें हैं। कई लोग इसे वोकल फॉर लोकल से भी जोड़ रहे हैं, और बात भी सही है। हमारे पर्व, हमारे समाज के, हमारे घर के पास ही किसी व्यक्ति का व्यापार बढ़े, उसका भी पर्व खुशहाल हो तब पर्व का आनंद कुछ और ही हो जाता है। सभी देशवासियों को रक्षाबंधन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। साथियों, 7 अगस्त को नेशनल हैंडलूम डे है। भारत का हैंडलूम, हमारा हैंडीक्राफ्ट, अपने आप में सैकड़ो वर्षों का गौरवमयी इतिहास समेटे हुए है। हम सभी का प्रयास होना चाहिए कि न सिर्फ भारतीय हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट का ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग करें, बल्कि इसके बारे में, हमें ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को बताना भी चाहिए। भारत का हैंडलूम  और हैंडीक्राफ्ट कितना रिच है, इसमें कितनी विविधता है, ये दुनिया जितना ज्यादा जानेगी, उतना ही, हमारे लोकल  कारीगरों और बुनकरों को लाभ होगा। साथियों, विशेषकर मेरे युवा साथियों, हमारा देश बदल रहा है। कैसे बदल रहा है? कितनी तेज़ी से बदल रहा है ? कैसे-कैसे क्षेत्रों में बदल रहा है ? एक सकारात्मक सोच के साथ अगर निगाह डालें तो हम खुद अचंभित रह जायेंगे। एक समय था जब खेल-कूद से लेकर के अन्य सेक्टरों में अधिकतर लोग या तो बड़े-बड़े शहरों से होते थे या बड़े-बड़े परिवार से या फिर नामी-गिरामी स्कूल या कॉलेज से होते थे। अब, देश बदल रहा है। गांवों से, छोटे शहरों से, सामान्य परिवार से हमारे युवा आगे आ रहे हैं।

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